Received from Shri Riddhi (an ardent follower of Shri Shri Thakur)
अपने श्रीमुख की बात'.....whenever you call, I appearwith you पर मास्टर साहेब का प्रसन सुनते ही की'whywith you,why not before you, श्रीश्रीठाकुर काश्रीमुख्मंडल एक अपूर्व दिव्य भावावेस से चमक उठता है.अपनी दाहिनी हथेली को जोर से बिछावन पर पटकतेहुए वे कुछ उचे स्वर में बोल उठते है, हरिनंदन,ताओ होते पारे जेदी पर्योजन हय.'प्रभु से श्रीमुख निसृत इस अंतिम अमिय-वाणी के समाप्तहोते ही अस्चर्याचकित, भक्तिविहल, सास रोके सुनरहे मास्टर साहेब ने चटपट अपनी नोटबुक निकालकरज्यो ही नोट करनी चाही, श्रीश्रीठाकुर ने तत्चनपुनः अपनी दाहिनी हथेली को बिछावन पर पटकते हुएउन्हें बाधा देते हुए कहते है, 'लेखो ना, एता प्राइवेट कथा.'--------- 'बशावन डा की पुस्तक जीवननाथ जगननाथ से'
On another occasion
श्रीश्रीठाकुर अनुकुलचंद्र यती आश्रम में बैठे है. यातिगनतथा अन्य भक्त सिस्यो में से कुछ तो श्री श्री ठाकुरके पास ही बैठे तथा कुछ खरे है. श्री हरिनंदनप्रसाद(मास्टर साहेब) भी सामने बैठे है.सामने बैठे मास्टर साहेब की ओर अपना श्रीमुख करकेश्री श्री ठाकुर कहना प्रारंभ करते है,-'हरिनंदन!'"I am the best fulfiller of Rama,best fulfiller of Shree Krishna,best fulfiller of Buddha,of Jesus Christ,Of Hazrat Mohammad,of what not!"और आगे वे कहते जा रहे है,- 'हरिनंदन!''Whenever you shoutI hear you,Whenever you callI apper with you!इसपर मास्टर साहेब पुचते है-'why with you,why not before you, ................
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