मेरी कही हुई बाते यदि तुम्हारी केवल कथनी और चिंता के ही खुराक मात्र हो -करने या आचरण के भीतर से उनका यदि वास्तव में ही विकास न कर सको -तो -प्राप्ति जो तुम्हारी तमसाचन्न ही रह जाएगी -यह किन्तु अतिनिस्चय है
-तुम्हारा ही ''मैं''(श्री श्री ठाकुर अनुकुलचंद्र)
Received in Orkut from Shri Rahul an ardent disciple of Shri Shri Thakur Anukulchandra
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